पँजाबी शेरोँ की पगडी


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पँजाबी शेरोँ की पगडी फ्राँस मेँ भी सुरक्शित सयुँक्त राष्ट्र सिक्खोँ के साथ (फ्राँस मेँ मुस्लिमोँ के बुरके पर भी मतभेद)
फ़्रांस में कुछ सिखों ने बिना पगड़ी के तस्वीर
खिंचवाने से मना किया था. (फ़ाइल तस्वीर)
फ़्रांस में पगड़ी पहनने के अधिकार के लिए
लड़ रहे एक सिख को संयुक्त राष्ट्र
मानवाधिकार कमेटी का समर्थन
मिला है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की समिति ने
कहा है कि फ़्रांस पासपोर्ट और अन्य पहचान
पत्रों की फ़ोटो बिना पगड़ी के खिंचवाने पर

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बाध्य कर सिखों की धार्मिक
स्वतंत्रता का हनन कर रहा है.
छिहतर साल के रणजीत सिंह का कहना है
कि वो संयुक्त राष्ट्र में अपनी शिकायत
इसलिए ले गए क्योंकि उन्हें फ़्रांस
की नीति अपमानजनक और ग़ैर-ज़रुरी लगी.
संयुक्त राष्ट्र का ये निर्णय फ़्रांस पर
बाध्यकारी नहीं है. फ़्रांस को मार्च तक जवाब
देने को कहा गया है.
रणजीत सिंह ने इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए
बीबीसी को बताया, " पगड़ी मेरे शरीर
का अंग है. ये मेरी पहचान है और मैं इसे
नहीं छोड़ सकता. "
पहचान पत्र के लिए फ़ोटो खिंचवाने
के मक़सद से रणजीत सिंह को चाहे एक
बार ही पगड़ी हटाने के लिए
कहा गया हो लेकिन इससे
उनकी धार्मिक स्वतंत्रता में
लगातार हस्तक्षेप
की संभावना बनी रहेगी."
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति
फ़्रांस में सिख पगड़ी पहनने के अधिकार को लेकर
अरसे से संघर्ष कर रहे हैं.
साल 2004 में फ़्रांस ने एक क़ानून पारित
किया था जिसके अनुसार स्कूलों में धार्मिक
चिन्हों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था.
इस क़ानून के तहत पगड़ी और मुसलमानों के
बुरक़ा पहनने अवैध क़रार दिया गया था.
इसके बाद के वर्षों में जो लोग पासपोर्ट
या अन्य आधिकारिक दस्तावेज़ो के लिए
अपनी तस्वीर खिंचवाना चाहते थे उन्हें
पगड़ी हटाने के लिए कहा जाने लगा था.
फ़्रांस में ड्राइविंग लाइसेंस के लिए
लोगों को नंगे सर और सामने देखते हुए तस्वीर
खिंचवाने के लिए कहा जाता है.
लेकिन रणजीत सिंह जैसे कुछ सिखों ने
ऐसी आधिकारिक तस्वीरों के लिए
पगड़ी उतारने से इंकार कर दिया. नतीजतन
फ़्रांस ने इन लोगों को पहचान पत्र और
पासपोर्ट देने से इंकार कर दिया था. लेकिन
रणजीत सिंह ने सरकार के इस फ़रमान को हल्के
में नहीं लिया.
वे कुछ समय बीमार चल रहे थे और बिना पहचान
पत्र के उन्हें राष्ट्रीय और स्थानीय सरकार
द्वारा इलाज में सहायता नहीं मिल
पा रही थी.
रणजीत सिंह ने बीबीसी को बताया,
"मेरा इलाज नहीं हो पा रहा है. मेरा एक्स-रे
नहीं हो रहा, ख़ून की जांच नहीं हो रही और मैं
अस्पताल में दाख़िला नहीं हो सकता."
रणजीत सिंह और उनके साथी 55 वर्षीय
शिंगारा सिंह ने अपनी क़ानूनी जंग
फ़्रांसिसी अदालतों में शुरू की थी. लेकिन जब
वो अपना केस हारे गए तो वे यूरोपीय अदालत
में गए.
रणजीत सिहँ ने कहा कि मुझे यक़ीन था कि सत्य और इंसाफ़
की जीत होगी और मैंने धैर्य से इस
दिन का इंतज़ार किया है. मैं उम्मीद
करता हूं कि अब फ़्रांस
अपना दायित्व निभाएगा और मुझे
बिना अपना सिर नंगा किए पहचान
पत्र बनवाने की इजाज़त देगा."
रणजीत सिंह
साल 2008 में यूरोप की मानवाधिकार
अदालत ने उनकी अपील सुरक्षा कारणों से रद्द
कर दी थी.
अदालत ने माना था कि शिंगारा सिंह के
धार्मिक अधिकारों का हनन तो हुआ है लेकिन
ड्राइविंग लाइसेंस के लिए बिना पगड़ी के
तस्वीर खिंचवाने से धोखाधड़ी और
जालसाज़ी का ख़तरा है इसलिए फ़्रांस का क़दम
न्यायसंगत है.
इसके बाद रणजीत सिंह ने संयुक्त राष्ट्र
की मानवाधिकार समिति में केस दर्ज किया.
अब संयुक्त राष्ट्र ने कहा है
कि पगड़ी सुरक्षा के लिए ख़तरा नहीं है.
सौजन्य-BBC news

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